1. भारत में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार (SRHR) से संबंधित जानकारी और सेवाओं तक पहुंच को सुदृढ़ करने और मौजूदा चुनौतियों का आकलन करने के लिए राज्य स्तर पर SRHR नीति और कार्यक्रम परिदृश्य की एक व्यापक समीक्षा की गई। इस पहल के तहत, हमने तीन क्षेत्रीय परामर्श सत्रों का आयोजन लखनऊ (उत्तर प्रदेश), पटना (बिहार) और उदयपुर (राजस्थान) में किया, जिनमें कुल 72 प्रतिभागियों ने भाग लिया। ये प्रतिभागी विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं और एडवोकेटिंग रिप्रोडक्टिव चॉइसेज़ (ARC) कोएलिशन के सदस्य थे।
ये सत्र समुदायों के साथ सीधे काम कर रहे जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और SRHR पैरोकारों से अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए एक सहयोगात्मक मंच के रूप में कार्यरत रहे। चर्चाओं का मुख्य उद्देश्य मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे के भीतर गर्भनिरोधक विकल्पों की गुणवत्ता, उपलब्धता और समानता को बेहतर बनाने पर था, जिसमें अधिकार-आधारित, जेंडर-संवेदनशील और युवाओं को शामिल करने वाले दृष्टिकोणों को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया। प्रतिभागियों ने आपूर्ति श्रृंखला में खामियां, प्रशिक्षित प्रदाताओं की कमी और गर्भनिरोधक उपयोग से जुड़ी सामाजिक धारणाओं जैसी बाधाओं को रेखांकित किया। इन विस्तृत चर्चाओं के आधार पर, हमने एक सिफारिशों का सेट तैयार किया है, जिसका उद्देश्य नीतिगत संवादों को प्रभावित करना और जनसंख्या की बदलती पारिवारिक नियोजन एवं प्रजनन स्वास्थ्य आवश्यकताओं के प्रति राज्यों की प्रतिक्रिया को मजबूत करना है। इन सिफारिशों का उपयोग अधिक उत्तरदायी, समावेशी और समानतापूर्ण SRHR नीतियों और कार्यक्रमों की पैरोकारी के लिए किया जा रहा है।


 

2. 13–14 अगस्त 2024 को PMNCH और FP2030 एशिया पैसिफिक हब के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय चर्चा का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य भारत के संदर्भ में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार (SRHR) पर रणनीतिक चर्चाएं करना था। इसमें देश के सात विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले 107 सामाजिक संस्थाओं (CSOs) ने सक्रिय भागीदारी की।
प्रतिभागियों में एडवोकेटिंग रिप्रोडक्टिव चॉइसेज़ (ARC) कोएलिशन के सदस्य, युवा-नेतृत्व वाले संस्थान, और जमीनी स्वास्थ्य नेटवर्क शामिल थे। चर्चाओं का केंद्र बिंदु SRHR और पारिवार नियोजन प्रणालियों को मजबूत करना था, जिसमें किशोरों और युवाओं की विशिष्ट ज़रूरतों और वास्तविकताओं पर विशेष ध्यान दिया गया। चर्चा में अधिकार-आधारित, समावेशी और अंतरअनुभागिए दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया गया, खासकर ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों से आने वाले युवाओं के लिए—जैसे ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी, दलित, आदिवासी, LGBTQIA+ समुदायों के सदस्य और विकलांग व्यक्ति। इस दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में चुनौतियां, और युवाओं की आवाज़ को नीतिगत प्रक्रियाओं में शामिल करने के अवसरों के बारे में भी चर्चा की गई। इस संवाद से प्राप्त प्रमुख निष्कर्षों और सिफारिशों को दस्तावेजीकृत किया गया है, ताकि वे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रयासों को सूचित कर सकें और भारत में एक अधिक समानतापूर्ण और उत्तरदायी SRHR इकोसिस्टम के निर्माण में योगदान दे सकें।


 

3.उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और राजस्थान राज्यों में ARC सदस्यों के साथ एक श्रृंखलाबद्ध क्षमता विकास कार्यशालाओं का आयोजन किया गया, जिनका उद्देश्य जेंडर, मरदानगी की अवधारणाओं, और SRHR (यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार) के दृष्टिकोणों को एक जेंडर-समावेशी दृष्टि से पुनः परिभाषित करने पर था—जो केवल द्विआधारी सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके परे भी सोचने को प्रोत्साहित करता है। 
इन सत्रों में SRHR तक पहुंच को अक्सर एक आयामी नजरिए से देखने की प्रवृत्ति को चुनौती दी गई, और पहचानों, सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों, तथा सेवाओं तक पहुंच में मौजूद बाधाओं के अंतःसंबंधों की पड़ताल की गई। चर्चाओं में इस बात पर जोर दिया गया कि समावेशी स्वास्थ्य ढांचे के निर्माण के लिए अंतरअनुभागिए (परस्पर अंतर्संबंधित) दृष्टिकोण अपनाना कितना आवश्यक है। यह समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति, उसकी जेंडर आधारित पहचान की परवाह किए बिना, SRHR सेवाओं तक समान रूप से पहुंच प्राप्त कर सके। 
साथ ही, कार्यशालाओं में मरदानगी की अवधारणाओं की भूमिका की भी समीक्षा की गई, यह समझने के लिए कि मरदानगी को लेकर विभिन्न धारणाएं किस प्रकार SRHR सेवाओं की पहुंच और उपयोग को प्रभावित कर सकती हैं। इन सत्रों में इस बात की भी चर्चा हुई कि किस प्रकार स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, पंचायती राज संस्थान, शिक्षा आदि मंत्रालय मिलकर किशोरों और युवाओं की विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नीतियों और कार्यक्रमों का विकास करके SRHR सेवाओं तक पहुंच को सशक्त बना सकते हैं। 
इसके अतिरिक्त, ARC कोएलिशन के सदस्यों के बीच गहरे संबंध और समझ विकसित करने के लिए विश्वास-निर्माण गतिविधियों को भी इन सत्रों का हिस्सा बनाया गया।